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Home>>Latest Headlines>>PM की पाठशाला आपके आसपास माहौल बना दिया जाता है कि परीक्षा ही सबकुछ है,
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PM की पाठशाला आपके आसपास माहौल बना दिया जाता है कि परीक्षा ही सबकुछ है,

admin
April 7, 2021 27 Views


आपके आसपास माहौल बना दिया जाता है कि परीक्षा ही सबकुछ है, यह सबसे बड़ी गलती है; यह जिंदगी का आखिरी मुकाम नहीं है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘परीक्षा पे चर्चा’ कार्यक्रम के तहत बच्चों से बातचीत की। पीएम ने कहा, उम्मीद है कि परीक्षा की तैयारी अच्छी चल रही होगी। यह पहला वर्चुअली प्रोग्राम है। हम डेढ़ साल से कोरोना के साथ जी रहे हैं। मुझे आप लोगों से मिलने का लोभ छोड़ना पड़ रहा है। नए फॉर्मेट में आपके बीच आना पड़ रहा है। आपसे न मिलना यह मेरे लिए बहुत बड़ा लॉस है। फिर भी परीक्षा तो है ही। अच्छा है कि हम इस पर चर्चा करेंगे।

परीक्षा के समय बहुत तनाव हो जाता है, तैयारी के दौरान तनाव से कैसे निपटें?

पल्लवी (आंध्रप्रदेश) और अर्पण पांडे (मलेशिया) 12वीं स्टूडेंट्स का सवाल)​​​​​​

PM का जवाब: आप जब डर की बात करते हैं तो मुझे भी डर लग जाता है। पहली बार परीक्षा देने जा रहे हैं क्या? मार्च-अप्रैल में परीक्षा आती ही है। यह तो पहले से पता होता है। जो अचानक नहीं आया है, वह आसमान नहीं टूट पड़ा है। आपको डर परीक्षा का नहीं है। आपके आसपास माहौल बना दिया गया है कि परीक्षा ही सबकुछ है। इसके लिए पूरा सामाजिक वातावरण, माता-पिता, रिश्तेदार ऐसा माहौल बना देते हैं कि जैसे बड़े संकट से आपको गुजरना है। मैं सभी से कहना चाहता हूं कि यह सबसे बड़ी गलती है। हम जरूरत से ज्यादा सोचने लग जाते हैं। इसलिए मैं समझता हूं कि यह जिंदगी का आखिरी मुकाम नहीं है। बहुत पड़ाव आते हैं। यह छोटा सा पड़ाव है। हमें दबाव नहीं बढ़ाना है।

आज ज्यादातर मां-बाप करियर, पढ़ाई, सिलेबस में इनवॉल्व

पहले क्या होता था, मां-बाप बच्चों के साथ ज्यादा इनवॉल्व रहते थे। आज ज्यादातर करियर, पढ़ाई, सिलेबस में इनवॉल्व है। मैं इसे इन्वॉल्वमेंट नहीं मानता। इससे उन्हें बच्चों की क्षमता का पता नहीं चल पाता। वे इतने व्यस्त हैं कि उनके पास बच्चों के लिए समय ही नहीं है। ऐसे में बच्चों की क्षमता का पता लगाने के लिए उन्हें बच्चों का एग्जाम देखना पड़ता है। इसलिए उनका आंकलन भी रिजल्ट तक सीमित रह गया है। ऐसा नहीं है कि एग्जाम आखिरी मौका है। यह तो लंबी जिंदगी के लिए अपने को कसने का मौका है। समस्या तब होती है जब हम इसे ही जीवन का अंत मान लेते हैं। दरअसल एग्जाम जीवन का गढ़ने का अवसर है। उसे उसी रूप में लेना चाहिए। हमें अपने आपको को कसौटी पर कसने का मौका खोजते रहना चाहिए। ताकि हम और बेहतर कर सकें।

कुछ सब्जेक्ट से मैं पीछा छुड़ाने में लगी रहती हूं, इसे कैसे ठीक करें?

 

पुन्यो सुन्या (अरुणाचल प्रदेश) और विनीता (टीचर) का सवाल

 

PM का जवाब: यह कुछ अलग तरह का विषय है। आप दोनों ने किसी खास विषय से डर की बात कही। आप ऐसे अकेले नहीं हैं। दुनिया में एक भी इंसान ऐसा नहीं है जिस पर यह बात लागू नहीं है। मान लीजिए आपके पास बहुत बढ़िया 5-6 शर्ट हैं। इनमें से एक-दो ऐसा है जो बार बार पहनते हैं। कई बार तो मां-बाप भी इन चीजों को लेकर गुस्सा करते हैं कि कितनी बार इसे पहनोगे। पसंद-नापसंद मनुष्य का व्यवहार है। इसमें डर की क्या बात है। होता क्या है जब हमें कुछ नतीजे ज्यादा अच्छे लगने लगते हैं उनके साथ आप सहज हो जाते हैं। जिन चीजों के साथ आप सहज नहीं होते, उनके तनाव में 80% एनर्जी उनमें लगा देते हैं। अपनी एनर्जी को सभी विषयों में बराबरी से बांटना चाहिए। दो घंटे हैं तो सभी को बराबर समय दीजिए।

कठिन फैसलों पर पहले विचार करें, सुबह मुकाबला करें

​​​​​​​टीचर्स हमें सिखाते हैं कि जो सरल है उसे पहले करें। एग्जाम में तो खास तौर से कहा जाता है। पढ़ाई को लेकर ये सलाह जरूरी नहीं है। पढ़ाई की बात हो तो कठिन को पहले अटेंड करें। इससे सरल तो और आसान हो जाएगा।मैं मुख्यमंत्री था, फिर प्रधानमंत्री बना। मैं क्या करता था, जो फैसले थोड़े कठिन होते थे। अफसर कठिन लेकर आते थे। मैंने अपना नियम बनाया है। कठिन फैसले पर पहले विचार करना है। रात में आसान फैसलों वाली चीजों के बारे में सोचता हूं। सुबह फिर कठिन से मुकाबला करने के लिए तैयार रहता हूं। सभी लोग हर विषय में पारंगत नहीं होते। किसी एक विषय पर उनकी पकड़ होती है।

सब्जेक्ट कठीन हों तो भागें मत, टीचर्स गाइड करें

लता मंगेशकर को देखिए। उनकी महारात ज्योग्राफी में भले न हो, संगीत में उन्होंने जो किया है वह हर एक के लिए प्रेरणा का कारण बन गई हैं। अगर आपको कोई सब्जेक्ट कठिन लगता है तो यह कोई कमी नहीं है। इससे भागिए मत। टीचर्स के लिए मेरी सलाह है कि टाइम मैनेजमेंट के संबंध में सिलेबस से बाहर जाकर उनके बात करें। उन्हें टोकने के बजाए उन्हें गाइड करें। टोकने का मन पर निगेटिव प्रभाव पड़ता है। कुछ बातें क्लास में सार्वजनिक तौर पर कहें। किसी एक बच्चे को सिर पर हाथ रखकर कोई बात कहना बहुत काम आएगा। आपके जीवन में ऐसी कौन सी बातें थीं, जो बहुत कठिन लगती थी। आज आप उसके सरलता से कर पा रहे हैं। ऐसे कामों की लिस्ट बनाइए। इन्हें किसी कागज पर लिख लेंगे तो किसी से कठिन वाला सवाल नहीं पूछना पड़ेगा।

खाली समय अवसरों का खजाना है, कुछ भी सीखने की कोशिश करें

माता-पिता को पता चलेगा कि आप परीक्षा के समय खाली समय की बात कर रहे हैं। तो वे क्या करेंगे। मुझे यह अच्छा लगा। खाली समय खजाना है। यह अवसर है। वर्ना जिंदगी रोबोट जैसी हो जाएगी। खाली समय दो तरह के हो सकते हैं। एक जो आपको सुबह से पता है कि आप आज इतने समय तक फ्री हैं। आप छुट्‌टी वाले दिन फ्री होंगे। दूसरा वो जिसका पता आखिरी वक्त पर चलता है। अगर आपको पता है कि मेरे पास खाली समय है तो आप अपने परिवार से कह सकते हैं कि मैं आपकी मदद कर सकता हूं। फिर सोचिए कि आपको कौन सी चीजें सुख देती हैं।

मैंने तय किया है कि मेरे पास खाली समय है तो थोड़ी देर झूले पर बैठूं। मेरा मन प्रफुल्लित होता है। जब आप खाली समय अर्न करें तो वह आपको असीम आनंद दे। खाली समय में कुछ चीजों से बचना चाहिए। ये आपका सारा समय खा जाएंगी। खाली समय में हमें अपनी जिज्ञासा बढ़ाने के बारे में सोचना चाहिए। आपके मां-पिता खाना बना रहे हैं तो उसे ऑब्जर्व कीजिए। इसका बहुत गहरा प्रभाव है। आप कुछ गतिविधियों से खुद को जोड़ लें। म्यूजिक, राइटिंग कीजिए। थॉट्स को एक्सप्रेस करने का एक मौका दीजिए।

क्रिएटिविटी का दायरा आपको बड़े फलक तक ले जाती है।

पैरेंट्स से कहा- आप अपने बच्चों को अपनी तरह तो नहीं बना रहे

जीवन का जो तरीका आपने चुना है, वैसी ही जिंदगी आपके बच्चे भी जिएं। अगर वे बदलाव करते हैं तो आपको लगता है कि पतन हो रहा है। बंगाल की एक बेटी ने स्टार्टअप शुरू किया है। उनका अनुभव मुझे याद रहता है। उन्होंने कहा कि मेरी मां को इससे बहुत झटका लगा। हालांकि वह काफी कामयाब रहीं। आपको यह सोचना चाहिए कि आप अपने बच्चों को जकड़ने की कोशिश तो नहीं कर रहे हैं। आपकी संतान यह विरोधाभाष देखती है तो उनके मन में सवाल उठते हैं। हमें ये सिखाया गया है कि जीव मात्र में परमात्मा का वास है।

आपके घर में जो लोग काम करने आते हैं, क्या कभी आपने उनके सुख-दुख की बात की है। अगर आप ऐसा करते तो आपको अपने बच्चे को मूल्य नहीं सिखाने पड़ते। मैं आप पर सवाल नहीं उठा रहा। सामान्य व्यवहार की बात कर रहा हूं। कई जगह होता है कि घर में कोई प्रोग्राम होता है तो वहां काम करने वालों से कहते हैं कि बहुत मेहमान आने वाले हैं, घर बताकर आना कि मैं देर से आऊंगा। बच्चे देखते हैं कि मेरे घर में काम करने वाले हमारी खुशी में हिस्सेदार ही नहीं हैं। इससे उनके मन में टकराव होता है।

हमारे घर के वातावरण में बेटे-बेटी के बीच असमानता दिखती है। वही बेटा समाज में जाता है तो उसके मन में नारी समानता की कुछ संभावना बन जाती है। इसलिए मूल्यों को कभी थोपने की कोशिश न करें। इस बात की पूरी संभावना होती है कि जो आप कर रहे हैं उसे बच्चा बहुत बारीकी से देखता है और दोहराता है।

81 देशों के छात्रों ने कराया रजिस्ट्रेशन

इस कार्यक्रम पर शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा है कि परीक्षा पे चर्चा कार्यक्रम विद्यार्थियों को परीक्षा के तनाव दूर करने और उनका मनोबल बढ़ाने में मदद करेगा। उन्होंने कहा कि यह पहला मौका है कि जब 81 देशों के विद्यार्थियों ने रचनात्मक लेखन प्रतियोगिता में भी भाग लिया।

परीक्षा पे चर्चा से पहले 17 फरवरी से 14 मार्च के दौरान कई विषयों पर 9वीं से 12वीं कक्षा के बच्चों, शिक्षकों और अभिभावकों के लिए ऑनलाइन लेखन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। इसमें लगभग 14 लाख प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।



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